आज के युग में युग पुरुष थे मेरे पापा
अपने उसूलों पर चलने वाले
नही झुकते थे किसी के आगे
न्यायप्रिय सिद्धान्तवादी और आदर्शवादी थे
अनुशासन में रहते और हमें भी अनुशासित रखते
समाज के उत्थान में उनका बडा योगदान था
वे एक समाज सुधारक थे
समाज के लिये एक उदाहरण थे
स्पष्टवादी और ख़ुदगर्ज़ थे
भ्रष्टाचार के विरोधी थे
न खाते थे न खाने देते थे
इस सिद्धांत को अपनाते थे
और इसलिये अच्छे अच्छे उनसे मिलने से कतराते थे
यही नही न्याय के लिये पहचाने जाते थे
हम उनके इन आदर्शो को कहॉ तक ले जा पायेंगे
पर कभी न कभी हम भी उसी राह पर आयेंगे
क्योंकि हम में भी उनका खुन बह रहा है
पर समाज को बदलने मे कुछ वक़्त तो लगता है
कुछ वक़्त तो लगता है।
ग़रीबों के मसीहा थे
हर आने जाने वालों पर जान देते थे
पर यदि उनके उसूलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये
तो उनकी एक न सुनते थे
चाहे हम उनके कितने भी क़रीबी क्यों न हो
अब एक अध्याय का अंत हो गया
पापा जी वहॉ चले गये
जहॉ से कभी कोई लौट कर न आया
पर उनकी हर बात अादर्श संस्कार
हमारे बीच अमर हो गया अमर हो गया
हमें इतनी ताक़त दे कि हम उनके नाम को अमर कर सके
और उनके पद चिन्हों पर चल सके २
नमन नमन नमन 🙏🏻
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