जयभोलेनाथ जयगुरुदेव
३ महीने के इंतजार के बाद आज तीन धाम की यात्रा की शुरुवात २.५.२०१७ मंगलवार को जनशताब्दी से रायपुर के लिये प्रस्थान किये ८.३० बजे रायपुर पहुँचे यहॉ से मम्मी भी शामिल हुई हमारी यात्रा में।
दूसरे दिन ३.५.२०१७ बुधवार को हमारा रिज़र्वेशन गोंडवाना में था १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ ६० आदि सीट नम्बर था हम सब ९ लोगो के समूह मे जा रहे है। फिर दुर्ग से राजू सुनंदा पापड़ी और राय मिले फिर हमारे और दो साथी भंडारा से चढ़े साधना और राजू शिवहरे । और इस तरह से रेल की यात्रा बडा ही सुखद रहा । रायपुर से दिल्ली की दूरी १३४४ किमी रही।
४.५.१६ गुरुवार को ७.३० बजे हम दिल्ली पहुँचे , वहाँ हमारी १२ सीटर गाड़ी इंतजार कर रही थी हम सब अपने सामान के साथ गाड़ी में बैठ गये, अब हम हरि के द्वार याने की हरिद्वार की ओर प्रस्थान किये । २२२ किमी की यात्रा हमने ६ घंटे में पूरी की ८.३० बजे निकले थे और २.३० बजे पावन नगरी में पहुँचे और रास्ते में खाते पीते मज़ा मस्ती के साथ पहुँचे । जैसे ही हरिद्वार पहुँचे वहाँ सबसे पहले सभी हर की पैड़ी गंगा में स्नान किये फिर गंगा आरती का भरपूर आनन्द लिये सही में बढ़ा आनंद आया भक्ति पूर्ण वातावरण का आनंद उठाये। हमने भी १०/- की आरती ख़रीद कर गंगा आरती में शामिल हुए । बहुत ही अच्छा लगा।
५.५.१७ शुक्रवार को तीन धाम की यात्रा आज शुरु हुई। आज हम गंगोत्री की यात्रा के लिये निकले । २८६ किमी की यात्रा की शुरुवात हुई सभी रोमांचित है, पहाड़ की चढ़ाई से शुरु हुई, बीच में उत्तरकाशी में काशी विश्वनाथ मंदिर मे दर्श्न किये फिर तीन धाम का biometric registration करवायें। ये उत्तराखंड सरकार का सराहनीय योगदान है।
एक के बाद एक कई पहाड़ पार करते हुए ९.०० घंटे की रोमांचित यात्रा कर हम धराली नाम के एक जगह पर पहुँचे जहॉ हमारा एक होटल कल्पकेदार सुरक्षित था वहॉ सामान रख कर हम सब आस पास घूमे फिर खाना खा कर सोने की तैयारी किये क्यों कि कल हम २० किमी की यात्रा कर गंगोत्री स्नान के लिये निकलने वाले थे।
६.५.१७ शनिवार को सुबह धराली से हम गंगोत्री की यात्रा पर निकले रास्ते में अद्भुत दृश्य देखने को मिले । हर्षिल जगह का मनोरम विह्ंगम दृश्य मनमोह लिया । अब थोडी देर हम गंगोत्री के पावन धरा पर पहुँच गये। सरकार के द्वारा बहुत ही बढिया व्यवस्था थी जगह जगह शौचालय और हमारे प्रकृति की भी सुरक्षा की जा रही है। और सड़क भी बढिया है। अब हम गाड़ी को छोड़ कर २ किमी कि पैदल यात्रा करते हुए गंगा के पावन धारा तक पहुँचे वहॉ गंगा की चोटी से ग्लेशियर का ठंडे पानी में हम सब स्नान कर अपने पापों को धो कर पुण्य कमाये । और ये सभी हमारे पूर्वजों का ही पुण्य प्रताप है जो हमें मिला है। वहॉ स्नान के बाद हम सब गंगा जल का पूजा किये और फिर हम गंगोत्री की यात्रा कर १०.०० बजे केदार नाथ की यात्रा पर निकल पड़े । गंगोत्री से गौ मुख ११ किमी की पैदल यात्रा कर जा सकते थे पर हमारी श्रद्धा इतनी ही थी।
गंगे नमामि !!! आज हम गंगोत्री से खामुंडा खाल की यात्रा शुरु किये क्योंकि यही हमारा होटल booked था। २१० किमी की यात्रा १०.०० बजे से ६.०० बजे कर श्री साई निवास पहुँचे । रास्ते में न जाने कितने पहाड़ो को पार करते हुए अपने गंत्वय में पहुँचे । बडा ही मनोरम दृश्य था ऊँचे ऊँचे वृक्ष और पहाड़ की वादियों को पार करते हुए पहुँचे। खाना खाने के बाद सो गये क्योंकि हमें आगे की यात्रा करनी थी।
७.२.१७ रविवार आज की यात्रा शुरु हुई २३५ किमी की यात्रा। बहुत ही मनोरम दृश्य को निहारते हुए आगे बढ रहे है। ६;३० बजे सुबह शुरु करते हुए सेरसा २.४५ बजे पहुँचे वैसे बीच में फाटा भी पड़ता है जहॉ पर हेलीकाप्टर सेवा उपलब्ध है यहॉ से केदारनाथ के लिये यात्रा शुल्क ९५०० रुपये है । पर सेरसा में हेलीकाप्टर का शुल्क ७५०० था। हम सेरसा में रुके और फिर खाना खाने के बाद सोनप्रयाग होते हुए त्रियुगी नारायण गये । वह स्थान जहॉ शिव पार्वती का विवाह हुआ था। दर्शन करने के बाद हम सब वापस अपने कमरे आ गये ताकि हम दूसरे दिन जल्दी उठ कर केदार नाथ की यात्रा पर जा सके ।
८.५.१७ दिन सोमवार यात्र शुरु करने के पहले रजिस्ट्रेशन कार्ड को रखना न भूले। हम ३.३० बजे सुबह केदार नाथ की यात्र शुरू किये अपनी गाड़ी से हम सोनप्रयाग गये जो कि हमारे होटल से २० किमी था जहाँ से हमें गौरी कुंड के लिये टैक्सी लेनी थी, जो कि सरकार के तरफ से शुल्क सहित सेवा था। जिसमें प्रत्येक यात्री २०/- शुल्क था । सोनप्रयाग से गौरी कुंड ५ किमी था। यहॉ तप्त कुंड भी था। सोनप्रयाग से गौरीकुंड हम चल पड़े । हम जैसे ही सोनप्रयाग पहु्ंचे सब घोड़े खच्चर वाले हमें घेर लिये। पर घोड़े का रजिस्टरेशन सरकार के रेट पर घोड़ा कर लिये । जाने का रेट १४००/- और वापसी का रेट ११००/- था और डोली का रेट ७५००/- और ४०००/- पिट्ठू का रेट था ये सारा रेट वहॉ बोर्ड में। लिखा हुआ है। अब घोड़े में बैठ हमारी कठिन यात्रा शुरु हुई। पैदल वाले घोड़े वाले पालकी वाले सभी एक ही रास्ते से आ जा रहे थे। कही पर कोई अनुशासन नही था पर फिर भी सभी अपने अपने रास्ते चल रहे थे। जिसको जहॉ से जगह मिल जाये, चलते जा रहे थे। पर सच ये सब भगवान की ही कृपा होती है कि सारे सह यात्री सकुशल वापस आ जाते है।
अब हम घोड़े में सवार हो कर निकल पड़े केदार भोले बाबा के दर्शन के लिये। कुछ सुन कर कुछ यात्रिओ के अनुभव और कुछ नेट से जानकारी इकट्ठा किये थे , जैसे कपूर रखना, छाता रेनकोट मफलर टोपी विक्स खाने का सामान पानी का बोतल आदि सामाग्री एक बैग पर ले कर चले। और इस तरह हमने भी पूरी तैयारी कर पिट्ठू बैग में सारा सामान ले कर चल पड़े, पर मेरा अनुभव कहता है कि सारा सामान धरा का धरा रहता है हम कोई भी सामान उपयोग नही कर पाते । घोड़े पर बैठ कर हम चल पड़े रास्ता आपदा के बाद नया बना है लगभग ५ से ७ किमी का रास्ता नया बना था जो कि चौड़ा और रेलिंग लगा हुआ है और बीच बीच में सीडी बनी हुई थी पर उसके बाद का रास्ता थोड़ा मुश्किलों भरा था । रास्ते में मनोरम दृश्य पेड़ पहाड़ नदी नाले बर्फ़ आदि देखते हुए आगे बढ़ते गये पर आधा ध्यान अपने रास्ते पर रहा । बस ऊँ नम: शिवाय का जाप करते हुए बढ़ते गये। बीच बीच में घोड़े के लीद और कचरा को साफ़ करते हुए निगम के कर्मचारी नज़र आ रहे थे। और साथ ही (SDRF) के लोग भी तैनात थे। हम काफ़ी ऊँचाई पर पहुँच गये थे लगभग १३००० फीट उपर पहुँच गये इस तरह हम कुल १४ किमी की घोड़े से यात्रा पूरी किये। पर अभी भी हम लगभग ३ किमी केदार जी से दूर थे। कुछ पैदल तो कुछ पिट्ठू पर बाबा जी के दरबार के पास पहुँचे । हम सब पैदल ३ किमी की दूरी पूरी किये । अभी हम कुछ नही खाये थे । हमने अपनी यात्रा ५.३० बजे शुरु किये और ९.३० बजे सुबह पहुँचे थे लगभग ४ घंटे की यात्रा घोड़े से थी। अब हम पहुँचे मंदिर के सामने पर अभी भी हम दूर थे। मंदिर के दोनो ओर प्रसाद की दुकानें सजी थी हम भी एक दुकान में अपना बैग रख दिये और प्रसाद लेकर चल पड़े दर्शन के लिये। अब तक मौसम साफ़ हो चुका था और सूर्य देवता अपने चरम में थे। हम क़तार में लग गये और लगभग २ घंटे के बाद हम अपने को बाबा जी के शरणों मे पाये काफ़ी भीड़ थी। सबने पूजा किये। अच्छे से दर्शन हुआ। केदार में भगवान जी का पीठ है और पशुपतिनाथ में सिर स्थापित है। हम दर्शन कर बाहर आये । ये हमारा सौभाग्य था कि काफ़ी नज़दीक से हमने दर्शन किये और पंडित जी भी हम सब को अच्छे से पूजा करवाये। हम तो अपने पूर्वजों और अपने गुरुदेव के आभारी है जिन्होंने हमारी यात्रा सफल बनाने में परोक्ष और अपरोक्ष रुप से योगदान दिये। अब प्यास और भूख सता रही थी पर हमारे बैग में सब सामान होते हुए भी हमारे पास नही था तब हमने सारा सामान दुगने क़ीमत पर ख़रीद कर खाया पिया। इसलिये अपना अनुभव ये कहता है कम सामान रखो सुखी रहो। अब बारी आयी उतरने की ,सभी काफ़ी परेशान थे कि कैसे उतरेंगे करके क्योंकि चढ़ाई घोड़े से कर लिये थे पर उतरना आसान नही था । उसी दिन याने कि ८.५.२०१७ को हेलीकाप्टर शुरु हुआ था पर उपर आने का टिकट नही लिये थे पर हम सब इसी उम्मीद में थे कि वापसी का हेलीकाप्टर का टिकट जरुर मिल जायेगा, पर भगवान जी ने हमें घोड़े से ही जाने के लिये आदेश दिये फिर हमने भी आदेश का पालन करते हुए वापस घोड़े से हुए। हमने अपने समूह के सबसे वरिष्ठ महिला मेरी मम्मी थी पर मन से सबसे ताकतवर और इच्छाशक्ति काफ़ी अच्छी थी, को पिट्ठू से भेजे जो कि ४०००/- लिया। अब हम जैसे ही घोड़े पर बैठने के लिये तैयार हुए मौसम बदल गया और ओले गिरने लगे बारिश होने लगी । वहॉ पालिथिन ३०/- में मिलता है उसे ख़रीद लिये । पहन कर घोड़े में बैठ गये पर उसके बाद बिना रुके हम लगभग ४ घंटे की यात्रा के बाद ६.३० बजे नीचे पहुँच गये। डर तो पूरे रास्ते बना रहा हमारे समूह के सभी सहयात्री आगे पीछे हो गये थे सिर्फ़ राय जी हमारे साथ साथ थे , रास्ते भर ऊँ नम: शिवाय का जीप करते हुए नीचे आये , बैग में सब सामान होते हुए भी हम बिना रुके नीचे उतरे किसी भी सामान का उपयोग नही किये। बस उतरने की जल्दी थी। और पॉच मिनट के अंदर ही हम सब आपस में मिल गये। ये भी एक चमत्कार ही है कि हज़ारों लोगो कि भीड़ में हम आपस में कैसे मिल गये। घोड़े वाले थोड़े लापरवाही से चलते है जोकि पैदल चलने वालों का ख़्याल नही रखते है। पर मैंने अपने घोड़े वाले को हिदायत दी थी कि पैदल चलने वालों का सम्मान करें। जैसे ही हम अपने समूह के लोगो को देखे तो सभी आत्मीयता से गले मिले भगवान का शुक्रिया अदा किये , और फिर वापस गौरीकुंड से देवप्रयाग से होते हुए सेरसा के होटल में पहुँचे। यहॉ पहुँच कर खाना खाये फिर सो गये ताकि हम दूसरे दिन की बद्री विशाल की यात्रा पर निकल सके।
९.५.२०१७ दिन मंगलवार को ७.०० बजे हम बद्री विशाल की यात्रा शुरु किये सभी काफ़ी थके हुए थे हाथ पैर शरीर में दर्द था पर सभी ऊर्जावान थे क्योंकि अगली यात्रा केदार नाथ से कम कठिन था । फिर यात्रा पहाड़ पेड़ नदी से होते हुए फिर मनोरम दृश्य के साथ आन्नद लेते हुए भजन कीर्तन करते हुए चल पड़े। मौसम सुहावना था। खाते पीते एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पार करते हुए बद्रीनाथ पहुँचे जो कि काफ़ी ऊँचाई पर होने की वजह से यहॉ का तापमान काफ़ी ठंडा था। पहाड़ बर्फ़ से घिरा हुआ और मक्खन का पहाड़ लग रहा था कभी कभी पहाड़ जब सूर्य की रोशनी पड़ता था तो लगता कि चमकते ग्लास का पहाड बना है। अद्भुत अनुभव अकाल्पनिक क्षण अलौकिक दृश्य । सब को निहारते हुए हम पहुँच गये बद्रीनाथ ६.३० बजे शाम को । जैसे ही उस भूमि पर पहुँचे सभी की इच्छा हुई कि पहले भोलेबाबा जी के दर्शन कर ले पर प्रभु कि इच्छा नही थी कि हम दर्शन करें और फिर बारिश भी होने लगी और तापमान तो मत पूछिये ३ डिग्री मई के महीने में। सभी यात्रा की थकान , ठंडी और बारिश भी से सब ने ये निर्णय लिये कि कल भोर में दर्शन करेंगे। सब खा पी कर सो गये।
१०.५.२०१७ बुधवार पूर्णिमा को सुबह ४.०० बजे तक सब तैयार हो कर भोलेबाबा के दर्शन करने निकल पड़े लगभग हमारे होटल से मंदिर की दूरी १ किमी थी हम अपने साथ नहाने के लिये कपड़े लेकर चले थे वहॉ पहुँचने पर बहुत सारे प्रसाद की दुकानें मिलती है और आगे जाने पर तप्त कुंड मिलता है अजीब करिश्मा या चमत्कार कहे कि चारों ओर बर्फ़ीली पहाड के बीच में मंदिर और उसके बीच तप्त कुंड ये विज्ञान के लिये भी शोध का विषय है। इतने ठंड में ३ डिग्री तापमान पर तप्त कुंड उसमें नहाने का अलग ही आन्नद आया पूरे शरीर का दर्द थकान सब दूर हो गया सभी नहा कर तैयार हो कर पूजा की थाली ख़रीद कर मंदिर की ओर चल पड़े । हमारे पास अनुभव नही था इसलिये हमें ठंड का सामना करना पड़ा गरम कपड़े तो रखे थे मोज़ा को पूजा सामाग्री लिये वहॉ छोड़ दिये थे पर आप सब मोज़ा भी पहन लीजियेगा । अब कड़ाके की ठंड में हम सब क़तार में खड़े रहे , पैर सुन्न पड़ रहा था और लगभग २ घंटे क़तार में खड़े रहने के बाद हमारा दर्शन करने का समय आ गया हमने बहुत अच्छे से दर्शन और पूजा किये फिर मंदिर परिसर में थोडी देर विश्राम के बाद बाहर आगे फिर चाय नाश्ता के बाद थोडी ख़रीदारी करने के बाद फिर आगे कि यात्रा ऋषिकेश के लिये शुरु किये। १०.३० हम ऋषिकेश की यात्रा प्रारंभ किये। ऋषिकेश के पहले हम पीपरकोटी में शिवलोक होटल में रुके । यहॉ होटल के सामने नवोदय विद्यालय था। पहाड़ी लोगो से मिले उनकी जीवन शैली के बारे में जाने। यहॉ अधिकतर पराँठा नाश्ता में मिलता है। खाना सात्विक मिलता था। खाने के लिये कोई परेशानी नही हुई। पीपरकोटी में रात रुकने के बाद हमारी ऋषिकेश की अधूरी यात्रा फिर से शुरु हुई। देव प्रयाग कर्ण प्रयाग विष्णु प्रयाग सोन प्रयाग रुद्र प्रयाग ये सभी उत्तराखण्ड के प्रमुख प्रयागौ है।
११.५.२०१७ गुरुवार सुबह ७.०० बजे निकल पड़े ऋषिकेश के लिये। रास्ते में धारी देवी की मंदिर गरुड़ गंगा से गरुड़ पत्थर लेकर दर्शन करते हुए हम पहुँचे ऋषिकेश । यहॉ हम ३ बजे दोपहर को पहुँचे यहॉ खाना खाने के बाद हम लक्ष्मन झूला देख कर कुछ ख़रीदारी कर फिर ४.३० बजे हम चल पड़े । यहॉ विदेशी सैलानी काफ़ी थे कोई मन के योग और कोई तन के योग के लिये यहॉ आते है। बडा अच्छा लगा कि हमारी संस्कृति और सभ्यता पूरे विश्व में सम्माननीय है। यहॉ से हम हरिद्वार के लिये निकल पड़े । ऋषिकेश काफ़ी गरम था। तब हमें लगा कि हम भारत में है। यहॉ से हम ५.०० बजे निकले और ४० मिनट में हरिद्वार पहुँच गये । यहॉ हमारा होटल Allpen Rose था बस हरिद्वार से यात्रा शुरु कर हरिद्वार पहुँचे पूरी यात्रा में हमारा वाहन tempo Traveller और उसका सारथी मदन था । अब हम हरिद्वार में चाय खाना के बाद सो गये।
१२.५.२०१७ शुक्रवार को हम सब सुबह जल्दी तैयार हो कर २ किमी मंसा देवी की मंदिर के लिये उड़न खटोला लेकर पहाड में बसी मंसा देवी जी का दर्शन करना था। वहॉ भी प्रसाद लिये उपर जाकर और क़तार में लगकर उड़न खटोला से मंसा देवी से मिलने चले , उपर से हरिद्वार बडा सुंदर दिख रहा था। वहॉ भी क़तार में खड़े रहे लगभग आधे घंटे के बाद हमार दर्शन करने का समय आया बड़े इत्मिनान से दर्शन हुए । थोडी देर वहॉ विश्राम के बाद हम फिर उड़न खटोला में बैठ कर वापस आ गये।
वहॉ से हम हरिद्वार के नीचे होटल में चाय नाश्ता के गंगा घाट से जल लेकर फिर वापस होटल में आ गये यहॉ आराम करने के बाद हम गायत्री कुंज शक्तिपीठ गये फिर होटल वापस आकर ७.३० बजे दिल्ली के लिये निकले जहॉ से हमारी छत्तीसगढ ट्रेन थी बिलासपुर के लिये । बडा ही मनोरंजन रोचक यात्रा रही। हम सब एक के बाद एक बिगड़ते गये यानि कि उनका गंत्वय आ गाया। और आख़िर में हम पहुँचे कोरबा । इस तरह यह यात्रा बडा सफल और सुखद रहा। मैंने अपना अनुभव आप सबको सुनाया और यदि आप भी यात्रा करने के इच्छुक हो तो जरुर करे । जय गंगोत्री जय केदारनाथ जय बद्रीनाथ !!!
साधना शर्मा - 9826541219
Our Team
Sulochana Tiwari - Senior Citizen मुरब्बा मेकर,
Bhupendra Sharma - Tour Planner
Rajendra Shivhare - Food Planner
Mridul Kumar Roy - Time Management
Rajendra Dodke - Photography
Sadhana Shivhare- Story Teller
Sadhana Sharma. - Story Writer
Papadi Roy - Silent behavior
Sunanda Dodke. - Bhajan Gayak
Computer Concepts Videos and Notes for Fundamental, MS-Word, MS-Excel, MS-Power Point, Visual Foxpro, Tally, C++, HTML Coding Question Answer Chhattisgarhi Cuisine Traditional Dishes with Low Fat High Protein and Minerals, Poem Articles ,Akbar Birbal Stories, Madhubani Arts, Crochet Works Traveling Memories
Wednesday, February 21, 2018
CHAR DHAM
Subscribe to:
Posts (Atom)
Visual Basic .Net Programming
Program 1 Sum of Two Numbers Form Design for Sum of Two Numbers Coding for OK Button Dim a, b, c as integer a=textbox1.text b=textbox2.text...
-
C++ UNIT - I वस्तुकेन्द्रित प्रोग्रमिंग (OBJECT ORIENTED PROGRAMMING) सी भी समस्या का समाधान करने के लिए पहले उस वस्तु पर केन्द्रित ...
-
टैली एकांउटिंग एकाउटिंग एकाउटिंग यह एक प्रोसेस है, जिसमें बिजनेस की आर्थिक जानकारी को समझना , रिकॉर्ड करना, सारांश निकालना और रिपोर्ट बनाया ...
-
Program 1 Sum of Two Numbers Form Design for Sum of Two Numbers Coding for OK Button Dim a, b, c as integer a=textbox1.text b=textbox2.text...